पाषाणकालीन सभ्यता
पाषाणकालीन सभ्यता
प्रागैतिहासिक काल
जिस काल का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता उसे प्रागैतिहासिक काल कहते है जैसे - पाषाणकालीन सभ्यता
आद्य-ऐतिहासिक काल
जिस काल की लिपि के प्रमाण तो मिले हैं पर अभी तक उन्हें पढ़ा नहीं जा सका जिससे किसी निष्कर्ष पर पंहुचा जा सके उसे आद्य-ऐतिहासिक काल कहते हैं जैसे- सिंधु घाटी सभ्यता , वैदिक सभ्यता
ऐतिहासिक काल
जिस काल के लिखित विवरण प्राप्त होतें हैं उसे ऐतिहासिक काल कहतें हैं इस काल का प्रारम्भ छठीं ईसा पूर्व से होता है
रोबर्ट ब्रूस फुट ने 1863 में भारत में पाषाणकालीन बस्तियों के अन्वेषण की शुरुवात की जबकि क्रिश्चियन जर्गेनसन थॉमसन ने डेनमार्क के कोपेनहेगन संग्रहालय की सामग्री के आधार पर पाषाण ,कांस्य ,और लौह युग का त्रियुगीय विभाजन 1820 में किया था भारतीय पुरातत्व के जनक के रूप में अलेक्जेंडर कनिंघम को माना जाता है जॉन मार्शल को सर्वप्रथम पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का महानिदेशक बनाया गया
पाषाणकालीन सभ्यता
उपकरणों की भिन्नता के आधार पर पाषाणकालीन सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया गया है
1-पुरापाषाणकाल
2 -मध्यपाषाणकाल
3 नवपाषाणकाल
1-पुरापाषाणकाल
पुरापाषाणकालीन मानव का जीवन पूर्णतया प्राकृतिक था वे मुख्यतया शिकार पर निर्भर रहते थे उनका भोजन मांस अथवा कंदमूल हुआ करता था इस काल के मानव को आग का ज्ञान था लेकिन उसके उपयोग से अपरिचित होने के कारण वह कच्चा मॉस खाता था इस काल का मानव शिकारी एवं खाद्य-संग्राहक था
इसको भी तीन भागों में विभाजित किया गया है
1 पूर्व पुरापाषाणकाल
2 मध्य पुरापाषाणकाल
3 उच्च पुरापाषाणकाल
1 पूर्व पुरापाषाणकाल
इस काल को उपकरणों के आधार पर दो संस्कृतियों में विभाजित किया गया है
1 चापर-चॉपिंग पेबुल संस्कृति - इस संस्कृति के उपकरण सर्वप्रथम पंजाब की सोहन नदी घाटी(पाकिस्तान ) से प्राप्त हुए हैं इसी कारण इस संस्कृति को सोहन संस्कृति भी कहा जाता है
पत्थर के वे टुकड़े जिनके किनारे पानी के बहाव में रगड़ खाकर चिकने और सपाट हो जाते है उन्हें पेबुल
कहा जाता है इनका आकर गोल मटोल होता है चापर बड़े आकर वाला वह उपकरण है जिसमे एक तरफ धार होती है जबकि चॉपिंग दो धार वाला औजार होता है
2-हैंड-एक्स संस्कृति -इसके उपकरण सर्वप्रथम मद्रास के संमीप वादमदुराई तथा अतिरम्पक्क्म से प्राप्त किये गए साधारण पत्थरों से कोर तथा फ्लैक प्रणाली द्वारा निर्मित किये गए हैं इसका प्रयोग पेड़ खाल जानवरों का चमड़ा जाता था
भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों से इन दोनों संस्कृतियों के उपकरण प्राप्त हुए है
राजस्थान के बागौर और दीदवाना क्षेत्र से भी पुरापाषाण कालीन औजार प्राप्त हुए हैं
उत्तर प्रदेश के जिले की बेलन घाटी में पूर्वपुरापाषाणकालीन युग से लेकर नवपाषाण युग तक के उपकरण का पूरा अनुक्रम मिला है उपकरणों के अतिरिक्त बेलन के लोहदा नाला क्षेत्र से इस काल कीअस्थि निर्मित मातृदेवी प्रतिमा मिली है जो कौशाम्बी संग्रहालय में सुरक्षित है
मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी के हथनोर ग्राम से मानव की खोपड़ी के प्रमाण मिले हैं
दक्षिण भारत से हैंड-एक्स परम्परा के उपकरण सर्वप्रथम मद्रास के समीपवर्ती क्षेत्र प्राप्त हुए इसी कारण इसे मद्रासी संस्कृति भी कहा जाता है सर्वप्रथम रोबर्ट ब्रूस फुट ने 1863 ईस्वी में मद्रास के पास पल्ल्वरम नामक स्थान से पहला प्राप्त किया था
सर्वाधिक प्राचीन चित्रकारी पूर्वपुरापाषाण युगीन भीमबेटका में मिली है प्रारंभिक चित्रों में हरे एवं गहरे लाल रंगों का उपयोग हुआ है
मध्यपुरापाषाणकाल
इस काल में क़्वार्टजाइट पत्थरों के स्थान पर जैस्पर चर्ट फ्लिंट आदि पत्थर प्रयुक्त होने लगें इस समय के मुख्य औजार फलक बेधनी , छेदनी और खुरचनी थे फलकों की अधिकता के कारण इस काल को फलक संस्कृति की संज्ञा दी जाती है
उच्चपुरापाषाणकाल
इस काल का प्रधान पाषाण उपकरण ब्लेड है जिनके दोनों किनारे समान्तर होते है इस युग में अस्थि उपकरणों का भी उपयोग किया जाने लगा इस युग की सर्वाधिक उल्लेखनीय खोज 85 सेमी व्यास वाला गोलकार चबूतरा था
मध्यपाषाण काल
इस काल के औजार छोटे पत्थरों से बने हुए है इनको माइक्रोलिथ या सूक्ष्म पाषाण कहा गया है लम्बाई 1 से 8 सेमी तक है कुछ औजारों का आकार ज्यामितीय है भारत में मानव अस्थि पंजर सर्वप्रथम इसी काल से मिलने लगता है
भारत का सबसे बड़ा मध्यपाषाणिक स्थल बागोर (राजस्थान ) है इसका उत्खनन वी के मिश्र ने करवाया था
गुजरात में स्थित लंघनाज स्थल की विशेषता यह है की शुष्क क्षेत्र में उद्घाटित यह पहला स्थल है जिससे मध्यपाषाणिक संस्कृति के विकास के क्रम का पता चलता है यहाँ रेत के 100 से अधिक स्थल मिले हैं यहाँ पर तीन सांस्कृतिक अवस्थाएं पायी गयी हैं
इलाहाबाद प्रतापगढ़ क्षेत्र में स्थित सराय नहर राय अत्त्यन्त महत्वपूर्ण स्थल है यहाँ एक छोटी बस्ती के साक्ष्य मिले है यही से स्तम्भगर्त के भी प्रमाण मिले है प्रतापगढ़ जिले में स्थित महदहा तथा दमदमा का उत्खनन हुआ जहाँ से 41 मानव शवाधान मिला जिसमे से 5 युगल शवाधान हैं और एक में 3 मानव कंकाल को एक साथ दफनाया गया था महदहा को तीन क्षेत्रों में बांटा गया झील क्षेत्र , बूचड़खाना संकुल क्षेत्र एवं कब्रिस्तान निवास क्षेत्र | बूचड़खाना संकुल क्षेत्र से हड्डी एवं सींग के उपकरण एवं आभूषण बड़ी मात्रा में मिले हैं
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में आदमगढ़ शैलाश्रय समूह में 25000 सूक्ष्म पाषाण औजार मिले है मध्यप्रदेश में पंचमढ़ी के निकट मध्यपाषाणयुग के दो शैलाश्रय मिले है जिनका नाम जम्बूदीप और डोरोथीद्वीप है
नवपाषाणकाल
नियोलिथिक शब्द का प्रयोग सबसे पहले सर जान लुबाक ने 1865 में प्रकाशित पुस्तक प्रीहिस्टोरिक टाइम्स में किया था इस काल में पत्थर उपकरणों को अधिक कुशलता से बनाया जाने लगा और उस पर पॉलिश किया जाने लगा इस काल में मानव ने वस्त्र निर्माण सीख लिया और अग्नि का उपयोग इस काल की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी दक्षिण भारत के नवपाषाण कालीन किसानों द्वारा उगाई गई सबसे पहली फसल रागी थी नवपाषाणकाल की मुख्यतः चार विशेषता थी
1-कृषि कार्य
2 पशुओं को पालना
3 औजारों पर पॉलिश
4 मृदभांड बनाना
भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों से नवपाषाण कालीन स्थल मिले है जिनमे से कुछ प्रमुख स्थल निम्ननलिखित है
मेहरगढ़ -यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित है यहाँ पर लोग कच्ची ईंटों के आयताकार मकानों में रहते थे यहाँ पर नवपाषाण काल से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के प्रमाण मिले है मेहरगढ़ को " बलुचिस्तान की रोटी की कटोरी "कहा जाता था यहाँ पर प्राचीनतम पशुपालन और कृषि के साक्ष्य मिले है यहाँ से 7000 ईसापूर्व के गेहू के साक्ष्य मिले हैं चावल के प्राचीनतम साक्ष्य कोल्डिहवा में माना जाता है जहाँ पर 6500 ईसापूर्व चावल की भूसी के प्रमाण है नवीनतम खोजो के आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप में अब प्राचीनतम कृषि साक्ष्य वाला स्थल उत्तेर प्रदेश के संतकबीर नगर जिले में स्थित लहरादेव है यहाँ से 9000 ईसापूर्व से 7000 ईसापूर्व के मध्य चावल के साक्ष्य हैं मानव द्वारा सबसे पहले जौ उगाया गया था मक्का का सर्वप्रथम साक्ष्य मेक्सिको , बाजरा का चीन में और जई का यूरोप में मिला
बुर्जाहोम -
यह कश्मीर में स्थित है यहाँ के लोग एक झील के किनारे जमीन के नीचे घर (गर्तवास ) बना कर रहते थे इनको खेती का ज्ञान था ये शिकार और मछली पर जीते थे यहाँ पर एक कब्र से मालिक के साथ कुत्ते को दफ़नाये जाने का प्रमाण मिला है
कोल्डिहवा -
इलाहबाद (उत्तेर प्रदेश ) के दक्षिण में बेलन नदी के तट पर स्थित है यहाँ तीन सांस्कृतक अनुक्रम नवपाषाण ताम्रपाषाण और लौहयुग देखे गए है यहाँ से 6000 ईसा पूर्व के आस पास धान उगाने का प्रमाण मिला है इसे चावल की खेती का भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में सबसे पुराना साक्ष्य माना जाता है
चौपानी मांडो -
इलाहबाद के पास स्थित इस स्थल से पुरापाषाणकाल से नवपाषाणकाल तक के तीन चरणों का पता चला है चौपानी मांडो के मृदभांड संसार के प्राचीनतम साक्ष्यों में से है
बिहार के सारण जिले में चिरांद ग्राम नामक एक बस्ती के निकट से नवपाषाणिक अवशेष मिले हैं असम के चित ग्राम क्षेत्र से दावोजलि हेडिंग स्थल प्राप्त हुआ है दक्षिण भारत के नवपाषाण संस्कृति के उत्खनित स्थल कर्नाटक में मस्की ब्रह्मगिरि हल्लुर आदि हैं दक्षिण भारत में कृषक की अपेक्षा चरवाहा संस्कृति का अधिक प्रमाण मिला है दक्षिण भारत में पिकलिहल, संगलकल्लू आदि जगहों पर राख के टीले मिले है जो मवेशियों के गोबर जलाने या किसी सांस्कृतिक संस्कार के कारण इकट्ठे हुए होंगे ा
ताम्रपाषाणिक संस्कृति
नवपाषाणकाल के अंत में धातु का प्रयोग आरम्भ हुआ प्रागैतिहासिक मानव द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली पहली धातु तांबा थी इस चरण में तांबा के साथ पत्थर का प्रयोग जारी रहा इसी कारण इसे ताम्रपाषाणिक संस्कृति अथवा चैकोलिथिक संस्कृति कहा जाता है इस संस्कृति में मुख्य रूप से पत्थर और ताँबे का प्रयोग किया गया कुछ प्रमुख ताम्रपाषाणिक संस्कृतियां है
आहार संस्कृति
कायथा संस्कृति
मालवा संस्कृति जोर्वे संस्कृति आदि ा
आहार संस्कृति का प्राचीन नाम ताम्बवती अर्थात तांबे वाली जगह है कायथा संस्कृति हड़प्पा संस्कृति की कनिष्ठ समकालीन मानी जाती है इसकी कई बस्तियां किलाबंद है मालवा संस्कृति के मृदभांडों को सभी ताम्रपाषाणि मृदभांडों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है मालवा संस्कृति के लोग कताई बुनाई जानते थे
जोर्वे संस्कृति महाराष्ट्र के दैमाबाद, इनामगांव ,नेवासा आदि जगहों पर पायी गयी है जिनमे से दैमाबाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण और बड़ा स्थल है यहाँ तांबे के साथ साथ बड़ी संख्या में कांसे की वस्तुयें प्राप्त हुई है मातृदेवी की एक आकृति सांड की एक आकृति के साथ जुडी हुई मिली है दैमाबाद से प्राप्त एक पात्र पर की गयी चित्रकारी में एक देवता को बाघों जैसे जंतुओं और मोर जैसे पक्षियों से घिरा हुआ दिखाया गया है कुछ विद्वान् इसकी तुलना शिव-पशुपति से करतें है इनामगांव से पांच कमरों वाला एक मकान मिला है तथा अनेक शिरकटी मूर्तियां मिली है उनकी तुलना महाभारत की देवी विशिरा से की गयी है
जोर्वे संस्कृति ( महाराष्ट्र )के दैमाबाद इनामगांव नेवासा आदि पुरास्थलों के घरों से मृतकों के अस्थि कलश मिले हैं जिन्हे फर्श के नीचे उत्तेर से दक्षिण दिशा में दफनाया था सोने के आभूषण बहुत ही दुर्लभ थे ये केवल जोर्वे संस्कृति में ही पाए गए है
नवदाटोली (मध्य प्रदेश ) एक महत्वपूर्ण उत्खनन स्थल है जिसका उत्खनन प्रो एच डी सांकलिया ने कराया था
यह स्थल इस महाद्वीप का सबसे विस्तृत उत्खनित ताम्रपाषाणयुगीन ग्राम स्थल है
लौह युग
भारत में ताम्रपाषण काल के समाप्त होते होते ग्रामीण बस्तियां बस चुकी थी लेकिन क्रांतिकारी परिवर्तन लोहे की खोज के साथ हुआ विश्व के सन्दर्भ में लोहे की खोज लगभग 1300 ईसापूर्व माना जाता है | भारत में लोहे के साक्ष्य 1000 ईसापूर्व के आस पास एटा जिले के अतरंजीखेड़ा से प्राप्त हुआ लेकिन हाल ही में सोनभद्र जिले की खुदाई से पता चला की काशी जिले में लोहे का इस्तेमाल 1500 ईसापूर्व में था
please share and comment
Good
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